बहाई मंदिर
भारत की जगमगाती राजधानी, नई दिल्ली के मध्य में कमल के आकार की एक इमारत शहर के निवासियों की चेतना पर उकेरी गई है, जो उनकी कल्पना को बांधती है, उनकी जिज्ञासा को ऊर्जा देती हैं और ऊर्जा की संकल्पना में एक नई क्रांति लाती है। यह बहाई मश्रिकल - अधकार है जिसे हम लोटस टेम्पल के नाम से जानते हैं। हर दिन एक नए उत्साह के साथ जागते हुए दर्शकों के झुण्ड इसके दरवाज़े पर आते हैं और इसकी सुंदरता निहारते हैं तथा यहां कि पवित्र आध्यात्मिक शांति में खो जाते हैं।
दिसम्बर 1986 में सार्वजनिक पूजा के लिए इसके समर्पण के समय से भारतीय उप महाद्वीप का यह मातृ मंदिर हजारों लोगों को अपने दर्शन देता है और इसे भारत का सर्वाधिक आतिथ्य पाने वाला भवन बनाता है। सुंदरता और शुद्धता का एक प्रबल संकेत, देवत्व का प्रतिनिधि, कमल के फूल के आकार वाला यह मंदिर भारतीय शिल्पकला में अतुलनीय है। शुद्ध और शांत जल से उठने वाले कमल के फूल का आकार ईश्वर के रूप को प्रकट करता है। यह प्राचीन भारतीय संकेत अनश्वर सुंदरता और सादेपन की संकल्पना को सृजित करने के लिए अपनाया गया था जो जटिल ज्यामिती पर आधारित है और इसका निर्माण ठोस रूप में किया गया है। लोटस टेम्पल प्राचीन संकल्पना, आधुनिक अभियांत्रिकी कौशल तथा वास्तुकलात्मक प्रेरणा का एक अनोखा मिश्रण है।
इसका अत्यंत शांति देने वाला प्रार्थना हॉल और मंदिर के चारों ओर घूमते ढेर सारे दर्शक, जो प्रेरणादायी स्रोत की खोज में यहां जागृत होते हैं और अपने लिए शांति का एक छोटा सा हिस्सा ग्रहण कर पाते हैं। पूरे कक्ष में फैली शांति का आभा मंडल पवित्रता को फैलाता है। कुछ लोगों को यहां मौजूद शांत मौन अच्छा लगता है और कुछ को यहां का दैवी वातावरण। यहां आने वाले लोग मंदिर के गर्भ गृह की शांति और सुंदरता से प्रभावित हो जाते हैं।
बहाई पूजा स्थल का निर्माण भारतीय उप महाद्वीप के अंदर बहाई इतिहास बनाने का एक महत्वपूर्ण अध्याय था। बहाई समुदाय ने अपने पूजा स्थलों को जितना अधिक संभव हो सुंदर और विशिष्ट बनाने का प्रयास किया है। वे बहाउल्ला और उनके बेटे अब्दुल बहा की लेखनी से प्रेरित हुए हैं।
यहां आध्यात्मिक आकांक्षाओं और विश्वव्यापी बहाई समुदाय की मूलभूत धारणाएं हैं, किन्तु विविध धर्मों की इस भूमि पर इसे सबको एक साथ जोड़ने वाले संपर्क के रूप में देखा जाना शुरू हुआ, जिससे ईश्वर, धर्म और मानव जाति की एकात्मकता के लिए सिद्धांतों के प्रभाव में विविध विचारों को एक सौहार्द पूर्ण रूप में लाया गया। इस मंदिर में किसी भी मूर्ति का न होना इस विश्वास को और भी मजबूत बनाता है और इसका अनुकूल प्रत्युत्तर मिलता है। यहां आने वाले दर्शक देवताओं की अनुपस्थिति पर उत्सुकता व्यक्त करते हैं और फिर भी वे यहां की सुंदरता और इमारत की भव्यता से चकित रह जाते हैं। एक प्रारूपिक प्रतिक्रिया इस प्रकार है; 'यहां मौन है और यहां आत्मा बोलती है। यहां आकर ऐसा लगता है मानो आप आत्मा की अवस्था में पहुंच गए हैं, जो स्थिर रहने तथा शांति की अवस्था है।'
लोटस टेम्पल इस शताब्दी के 100 प्रामाणिक कार्यों में से एक है, यह महान सुंदरता का एक सशक्त प्रतीक है जो एक महत्वपूर्ण वास्तुकलात्मक नमूना बनने के लिए एक भक्त गणों के स्थान के रूप में कार्य करते हुए अपने शुद्ध कार्य के परे जाता है। श्रद्धा और मानवीय प्रयास के संकेत के रूप में यह ईश्वर की ओर जाने का मार्ग विस्तारित करता है, यह मंदिर दुनिया भर में प्रशंसाएं प्राप्त कर चुका है। वर्ष 2000 में इस मंदिर को 'ग्लोब आर्ट अकादमी 2000' का पुरस्कार दिया गया है और साथ ही इसे सभी राष्ट्रों, धर्मों तथा सामाजिक वर्गों के लोगों के बीच एकता और भाई चारे की भावना को प्रोत्साहन देने के लिए 20वीं शताब्दी के ताजमहल की सेवा का परिमाण में कहा गया है जिसकी तुलना दुनिया भर के किसी अन्य वास्तुकलात्मक स्मारक से नहीं की जा सकती है।
मंदिर की प्रशंसा में एक प्रसिद्ध भारतीय कवि ने कहा है "वास्तुकला की दृष्टि से, कला की दृष्टि से, नैतिकता की दृष्टि से यह भवन संपूर्णता का आगम है।"